Tuesday 4 April 2017

कौन हैं रोहिंग्‍या मुसलमान और क्‍यों मोदी सरकार उन्‍हें देश से बाहर निकालेगी


केंद्र सरकार उन रोहिंग्‍या मुसलमानों को देश से बाहर निकालने की योजना पर काम कर रही है जो गैर-कानूनी तरीके से देश में दाखिल हुए थे। ये मुसलमान म्‍यांमार से देश में आए थे और अब जम्‍मू कश्‍मीर के अलग-अलग हिस्‍सों में गैर-कानूनी तरीके से रह रहे हैं। सरकार अब उस योजना पर काम कर रही है जिसके तहत इन रोहिंग्‍या मुसलमानों को गिरफ्तार करके उन्‍हें फारॅनर्स एक्‍ट के तहत म्‍यांमार प्रत्‍यर्पित किया जाए।
भारत में हैं करीब 40,000 रोहिंग्‍या मुसलमान
इंग्लिश डेली टाइम्‍स ऑफ इंडिया की ओर से दी गई खबर के मुताबिक इस योजना में देश में रह रहे रोहिंग्‍या मुसलमानों को हिरासत में लेना, उनकी गिरफ्तारी और फिर उनका प्रर्त्‍यपण शामिल है।
गृह मंत्रालय के मुताबिक देश के अलग-अलग हिस्‍सों में करीब 40,000 रोहिंग्‍या मुसलमानों ने शरण ले रखी है जिसमें से जम्‍मू में ही अकेले 5,500 से 5,700 रोहिंग्‍या मुसलमान हैं और यह संख्‍या 11,000 तक हो सकती है। जम्‍मू कश्‍मीर की मुख्‍यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने 20 जनवरी को जम्‍मू कश्‍मीर विधानसभा में कहा था कि राज्‍य में कुछ मदरसे हैं जो रोहिंग्‍या मुसलमानों से जुड़े हैं। उनका कहना था कि अभी तक किसी भी रोहिंग्‍या मुसलमान को राज्‍य में आतंकवाद से जुड़ी किसी भी घटना में शामिल नहीं पाया गया है लेकिन 38 रोहिंग्‍या मुसलमानों पर अलग-अलग केसों में 17 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। इन एफआईआर में गैर-कानूनी तरीके से बॉर्डर क्रॉस करना भी शामिल है। यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स कमीशन की ओर से कहा गया है कि 14,000 रोहिंग्‍या मुसलमान भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। लेकिन भारत की ओर से इस दावे को खारिज कर दिया गया है। भारत उन्‍हें विदेशी मानता है जो गैर-कानूनी तरीके से देश में दाखिल हुए हैं।
कौन हैं रोहिंग्‍या मुसलमान
  • रोहिंग्‍या मुसलमान मूलत: म्‍यांमार के रहने वाले हैं।
  • यहां के पश्चिमी रखाइन इलाके में इनकी आबादी करीब 10 लाख है।
  • कहते हैं कि ये 16वीं सदी से ही रखाइन में बसे हैं।
  • रोहिंग्या मुसलमानों का कोई देश नहीं है और उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है।
  • वे म्‍यामारं में रहते हैं और म्‍यांमार उन्हें कानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है।
  • म्‍यांमार में बौद्ध धर्म के मानने वालों की आबादी कहीं ज्‍यादा है।
  • बौद्ध धर्म के अनुयायियों पर रोहिंग्‍या मुसलमानों को प्रताड़‍ित करने का आरोप लगता रहता है।
  • यूनाइटेड नेशंस इन्‍हें दुनिया की सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है।
  • रखाइन प्रांत में बसे इन रोहिंग्‍या लोगों को बौद्ध 'बंगाली' कहकर भगा देते हैं।
  • रोहिंग्‍या मुसलमान बांग्लादेश के चटगांव की बोली बोलते हैं।
  • मलेशिया और थाइलैंड के बॉर्डर के पास रोहिंग्या मुसलमानों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं।
  • म्यांमार से सटे बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्से में करीब तीन लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं।
  • बांग्लादेश भी सिर्फ कुछ ही रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है।
  • अब रोहिंग्या मुसलमान भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों की ओर भी जा रहे हैं।

ईवीएम का विरोध और ईवीएम पर चुप्पी- पूरी कहानी


मध्यप्रदेश के भिंड ज़िले के अटेर में ईवीएम मशीन के डेमो के दौरान किसी भी बटन को दबाने पर वीवीपैट पर्चा भारतीय जनता पार्टी का निकलने के बाद ज़िले के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को हटा दिया गया है.
चुनाव आयोग ने भी इस मामले की पूरी जानकारी राज्य की निर्वाचन अधिकारी सेलिना सिंह से मांगी थी. इसके बाद ये कार्रवाई हुई है.
सेलिना सिंह ने बीबीसी से बातचीत में कहा है कि मशीनें ठीक से कैलिब्रेट नहीं हुई थीं, इसलिए ऐसा मामला सामने आया. मध्य प्रदेश की दो विधानसभा सीटों पर आगामी नौ अप्रैल को चुनाव होने हैं.
इन सीटों पर उन ईवीएम मशीनों के ज़रिए चुनाव कराया जाएगा जिनमें वीवीपैट लगे हुए होंगे, यानी वो पेपर जिससे वोट डालने वाले को पता चलता है कि उसका वोट किसे गया है.
उधर इस मामले की जांच करने पहुंची चुनाव आयोग की टीम ने भी मशीन में ख़राबी पाई है.
भोपाल में मीडिया के सामने इन अधिकारियों ने ये भी बताया है कि इस मशीन का इस्तेमाल यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कानपुर में किया गया था.
हालांकि इस विवाद ने एक बार फिर से ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर चल रही बहस को हवा दे दी है. उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे के तुरंत बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने ईवीएम की भूमिका पर सवाल उठाए थे.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कहा था कि अगर किसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष ने ईवीएम पर सवाल उठाए हैं तो उसकी जांच कराई जानी चाहिए.
पंजाब विधानसभा के नतीजों पर आम आदमी पार्टी ने ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप लगाए थे जिन्हें रविवार को चुनाव आयोग ने ख़ारिज कर दिया.

विपक्ष की हताशा या..
हालांकि जब आरोप लगे, तब चुनाव आयोग ने इन मांगों पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा था. भारतीय जनता पार्टी ने भी यूपी समेत चार राज्यों में सरकार बनाने के जश्न के बीच इसे विरोधी दलों की हताशा बताया था.
संसद में सरकार की ओर से केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, "जब आप चुनाव जीतते हैं तब ईवीएम की मशीन सही होती है और हारने पर आपको लगता है कि मशीन के साथ छेड़छाड़ की गई है."
रविशंकर प्रसाद ने ये भी कहा कि 2006 में चुनाव आयोग ने जब ईवीएम के इस्तेमाल पर सभी पार्टियों की बैठक बुलाई थी, तो किसी ने इसका विरोध नहीं किया था.
वैसे उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में केवल 20 सीटों पर वीवीपैट वाली ईवीएम के ज़रिए मतदान हुआ था, बाक़ी जगहों पर उन मशीनों का इस्तेमाल हुआ था, जिसमें ये पता नहीं लग सकता है कि किसने किसको वोट दिया था.

वीवीपैट वाली ईवीएम के इस्तेमाल का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर, 2013 में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया था.
लेकिन इसकी व्यवस्था करने के लिए चुनाव आयोग को 3000 करोड़ चाहिए और बीते दो साल में चुनाव आयोग ने सरकार से इस फंड की मांग कई बार की है, लेकिन केंद्र सरकार से उसे ये पैसा नहीं मिला है.
मध्यप्रदेश में जिस तरह का मामला सामने आया है, उससे ईवीएम के इस्तेमाल को बंद किए जाने की मांग ज़ोर पकड़ सकती है.
कांग्रेस के प्रवक्ता दिग्विजय सिंह ने कहा, "मेरा तो हमेशा से ईवीएम पर भरोसा नहीं रहा है. जब दुनिया भर के देशों में बैलेट पेपर से चुनाव होते हैं, तो हमारे यहां ईवीएम से चुनाव क्यों हों?"

भाजपा ने 2009 में विरोध किया

भारतीय जनता पार्टी इन दिनों ईवीएम के इस्तेमाल का समर्थन कर रही है, लेकिन वह इसका विरोध करने वाली सबसे पहली राजनीतिक पार्टी थी.
2009 में जब भारतीय जनता पार्टी को चुनावी हार का सामना करना पड़ा, तब पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे.
इसके बाद पार्टी ने भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों, कई गैर सरकारी संगठनों और अपने थिंक टैंक की मदद से ईवीएम मशीन के साथ होने वाली छेड़छाड़ और धोखाधड़ी को लेकर पूरे देश में अभियान चलाया.
इस अभियान के तहत ही 2010 में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा प्रवक्ता और चुनावी मामलों के विशेषज्ञ जीवीएल नरसिम्हा राव ने एक किताब लिखी- 'डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन?'

भाजपा नेताओं ने किताब में उठाए सवाल
इस किताब की प्रस्तावना लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखी और इसमें आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री एन चंद्राबाबू नायडू का संदेश भी प्रकाशित है.
इतना ही नहीं पुस्तक में वोटिंग सिस्टम के एक्सपर्ट स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डेविड डिल ने भी बताया है कि ईवीएम का इस्तेमाल पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है.
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने किताब की शुरुआत में लिखा है- "मशीनों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है, भारत में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन इसका अपवाद नहीं है. ऐसे कई उदाहरण हैं जब एक उम्मीदवार को दिया वोट दूसरे उम्मीदवार को मिल गया है या फिर उम्मीदवारों को वो मत भी मिले हैं जो कभी डाले ही नहीं गए."

किताब का चौथा अध्याय ऐसे तमाम उदाहरणों से भरा है. लेकिन अब मौजूदा विवाद के बाद इस मुद्दे पर जीवीएल नरसिम्हा राव कोई प्रतिक्रिया देना नहीं चाहते हैं. हालांकि वे ये ज़रूर कहते हैं कि "ईवीएम का विरोध कर रही पार्टियों को चुनाव आयोग ने जवाब दे दिया है."
जीवीएल नरसिम्हाराव ने अपनी किताब में 2010 के ही उस मामले का जिक्र विस्तार से किया है जिसमें हैदराबाद के टेक एक्सपर्ट हरि प्रसाद ने मिशिगन यूनिवर्सिटी के दो रिसर्चरों के साथ मिलकर ईवीएम को हैक करने का दावा किया था.
इस प्रोजेक्ट में शामिल प्रोफेसर जे एलेक्स हाल्डरमैन ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया था कि मोबाइल फ़ोन से संदेश भेजकर वे ईवीएम मशीन के नतीजे को प्रभावित कर सकते हैं.

'होलसेल फ़्रॉड संभव'
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी ईवीएम के इस्तेमाल का जोर शोर से विरोध करते रहे हैं. उन्होंने 2009 के चुनावी नतीजे के बाद सार्वजनिक तौर पर ये आरोप लगाया था कि 90 ऐसी सीटों पर कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की है जो असंभव है. स्वामी के मुताबिक ईवीएम के ज़रिए वोटों का 'होलसेल फ्रॉड' संभव है.

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल कहते हैं, "जिन लोगों ने सबसे ज़्यादा विरोध किया है वो आज चुप हैं. अपनी सुविधा के हिसाब से लोगों ने इसका विरोध किया और अब दूसरों के विरोध को ख़ारिज़ कर रहे हैं."
वैसे भारत में ईवीएम के प्रयोग पर सबसे पहले सवाल दिल्ली हाई कोर्ट में वरिष्ठ वकील प्राण नाथ लेखी (बीजेपी नेता मीनाक्षी लेखी के पिता) ने 2004 में ही उठाया था.

कांग्रेस ने भी उठाया सवाल
2009 के आम चुनावों में जब बीजेपी के नेता ईवीएम पर सवाल उठा रहे थे, ठीक उसी वक्त ओडिशा कांग्रेस के नेता जेबी पटनायक ने भी राज्य विधानसभा में बीजू जनता दल की जीत की वजह ईवीएम को ठहराया था.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद कांग्रेस के नेता और असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे और कहा था कि बीजेपी की जीत की वजह ईवीएम है.
ऐसे में ये कहा जा सकता है कि भारत में जब तक पार्टियां चुनाव नहीं हारने लगतीं तब तक उन्हें ईवीएम मशीन से कोई शिकायत नहीं होती.

जब लालू और ममता ने किया विरोध
लेकिन ये कहना भी पूरी तरह सच नहीं है. भारत में ईवीएम का विरोध वो नेता भी कर रहे हैं, या फिर पूर्व में कर चुके हैं, जिन्होंने चुनाव में ज़ोरदार कामयाबी हासिल की है. इसमें राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शामिल हैं.
ये दोनों नेता ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग कर चुके हैं. ये अलग बात है कि इन्हें अलग चुनावों में बहुमत भी मिला है.
इन दोनों के अलावा दिल्ली में ज़ोरदार जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल को बैन किए जाने की मांग कर रहे हैं.
पहले तो ये कहा जा रहा था वीवीपैट लगाने के बाद ईवीएम मशीन के साथ किसी तरह की गड़बड़ी की आशंका नहीं होगी लेकिन मध्य प्रदेश के मामले के बाद वीवीपैट के साथ भी ईवीएम संदेह के घेरे में आ चुकी है.

संदेह के बाद क्या होगा?
वैसे चुनाव आयोग समय समय पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को आधुनिक बनाने की दिशा में काम करता रहा है. हाल ही में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव से ठीक पहले भी चुनाव आयोग ने ईवीएम को आधुनिक बनाने के लिए टेंडर मंगाए थे.
वैसे ये जानना दिलचस्प है कि भारत में 2004 के आम चुनावों से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल पूरे देश में हुआ है और उसके बाद किसी सीट पर कभी भी वोटों की दोबारा गिनती नहीं हुई है.
अगर किसी सूरत में इसकी नौबत आए, तो ये संभव ही नहीं होगा.
ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल को वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल तर्कसंगत नहीं मानते. उनका कहना है, "मौजूदा समय में भारत का प्रत्येक राजनीतिक दल कभी ना कभी ईवीएम का विरोध कर चुका है. ऐसे में संसद की संयुक्त संसदीय समिति को ईवीएम के इस्तेमाल की जांच करनी चाहिए."
वैसे बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने की स्थिति में भारत की चुनावी प्रक्रिया लंबी भी होगी और खर्च भी बढ़ेगा. लेकिन दुनिया भर के विकसित देशों में बैलेट पेपर से ही चुनाव कराए जाते हैं, उस अमीरका में भी जहां ईवीएम पहली बार बना था.