Sunday 29 November 2015

जानिए स्वर्ण मौद्रीकरण योजना के बारे में

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से घरों और मंदिरों में संचित सोने के निवेश के लिए स्वीकृत स्वर्ण मौद्रीकरण योजना से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा औपचारिक तौर पर 5 नवंबर को यह योजना शुरू की जाएगी। गौरतलब है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सोने के मौद्रीकरण के लिए केंद्रीय बजट 2015-16 में जो प्रस्ताव रखा था, उसके मद्देनजर घरों में संचित सोने के पूंजीकरण की योजना से लोगों को उनके सोने के निवेश के लिए आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। स्वर्ण मौद्रीकरण योजना में 30 ग्राम सोना ज्वैलरी, सिक्के या बिस्किट किसी भी रूप में न्यूनतम एक वर्ष और अधिकतम 15 वर्ष की अवधि के लिए बैंकों में जमा कराया जा सकेगा, बैंक इस तरह की जमा पर ब्याज दर तय करने के लिए स्वतंत्र होंगे और जमा का मूल और ब्याज सोने में आंका जाएगा। बैंक अपने अकाउंट में सोना स्वीकार करेंगे। बैंक के द्वारा जो ब्याज दिया जाएगा, उस ब्याज पर इनकम टैक्स में छूट भी मिलेगी। रिजर्व बैंक ने कहा कि परिपक्वता पर मूल और ब्याज का भुगतान जमाकर्ता की इच्छा पर किया जाएगा कि वह वापसी के समय सोने के बाजार मूल्य के आधार पर सोना और जमा ब्याज के बराबर रुपए में भुगतान चाहता है या सोने में। इसका फैसला जमाकर्ता को सोना जमा करते समय लिखित में देना होगा, जिसे बाद में बदला नहीं जा सकेगा। यह प्रावधान इसलिए है कि बैंकों को यह तय करने में आसानी हो कि जमा सोने का इस्तेमाल किस तरीके से करना है। स्वर्ण जमाकर्ता को वही सोना नहीं मिलेगा, जो जमा किया गया था। इस योजना के तहत जमा किए जाने वाले सोने की शुद्धता जांचने का कार्य मानक ब्यूरो द्वारा मान्यता प्राप्त हॉलमार्किंग केन्द्रों में किया जा सकेगा। ग्राहकों को इस आधार पर शुद्धता और वजन का प्रमाणपत्र दिया जाएगा। ग्राहकों द्वारा बैंकों में लाए गए सोने को उनके सामने ही हॉलमार्किंग केन्द्र में पिघलाया जाएगा। जितना शुद्ध सोना निकलेगा उसे स्वर्ण जमाकर्ता के खाते में जमा करने के लिए बैंकों के द्वारा ग्राहक का स्वर्ण बचत खाता खोला जाएगा, जिसमें सोना और ब्याज का भुगतान जमा किया जाएगा। सरकार ने स्वर्ण मौद्रीकरण योजना का जो मसौदा तैयार किया है वह व्यावहारिक है और उससे लोगों के घरों में पड़ा सोना बाहर निकलने की संभावनाएं बढ़ेगी। यद्यपि पिछले कई वर्षों सेे भारत सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा लोगों की सोने में निवेश सम्बन्धी रुचि को हतोत्साहित करने और सोने के आयात को कम करने के लिए कई कदम उठाए जाते रहे हंै, लेकिन उनसे सोने के बढ़ते हुए उपभोग में कमी नहीं लाई जा सकी है। ऐसे में लोगों के पास संचित अनुत्पादक सोने को अर्थव्यवस्था के काम लाने और आयातित सोने पर निर्भरता घटाने के लिए स्वर्ण मौद्रीकरण योजना अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है। भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक और उपभोक्ता देश है। भारत हर साल 800 से 1000 टन सोने का आयात करता है। जिसका मूल्य 50 अरब डॉलर से अधिक होता है, जो कि आयात वस्तुओं में कच्चे तेल के बाद दूसरे क्रम पर है। आयातित सोने की लागत भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन फीसदी के लगभग होती है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल ने कहा है कि भारत में घरों और मंदिरों में संचित करीब 22,000 टन सोना बिना उपयोग के पड़ा है। ऐसे सोने को उत्पादक स्वरूप दिया जा सकता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि स्वर्ण मौद्रीकरण योजना के व्यावहारिक उपयोग के साथ-साथ हमें घरों और मंदिरों में संचित अनुत्पादक सोने को अर्थव्यवस्था के काम में लगाए जाने के रणनीतिक कदम उठाने होंगे। इसका इस्तेमाल देश के बुनियादी ढांचे, कारोबार विकास, रोजगार पैदा करने, कौशल विकास, निर्यात बढ़ाने और राजस्व अर्जन के लिए रणनीति बनानी होगी। इसे देश के वित्तीय, आर्थिक और सामाजिक ढांचे का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना होगा। सोने के कारोबार से विदेशी मुद्रा की कमाई और बड़ी संख्या में रोजगार की रणनीति भी बनानी होगी। इस समय देश से 8 अरब डॉलर के सोने के आभूषणों का निर्यात किया जाता है और अब भारत को वर्ष 2020 तक सोने के आभूषणों का निर्यात पांच गुणा बढ़ाकर 40 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसके आधार पर भारत को 50 लाख लोगों को रोजगार सृजन का भी लक्ष्य लेकर आगे बढऩा चाहिए। यदि देश के सोने का उपयोग रोजगार बढ़ाने एवं कौशल विकास के लिए किया जाएगा, तो देश की प्रतिभाएं देश को आर्थिक महाशक्ति बना सकती हैं, लेकिन देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण संस्थाओं की कमी और गरीब प्रतिभाशाली छात्रों के पास संसाधनों की कमी के कारण बाजार की जरूरत के अनुरूप प्रतिभाओं की पूर्ति नहीं हो पा रही है। इस कटु सत्य को स्वीकार करना होगा कि सरकार की छतरी के नीचे उद्यमपरक मानव संसाधन तैयार करने वाली गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक संस्थाओं की संख्या बहुत कम है और सरकार के लिए छलांगे लगाकर बढ़ती हुई छात्र संख्या के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ठोस पहल संभव नहीं है। ऐसे में देश के मंदिरों एवं घरों में संचित सोने का उपयोग अधिक से अधिक गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना एवं प्रतिभाओं को तराशने में किया जाना चाहिए। इससे देश को बहुत फायदा होगा। यद्यपि नई स्वर्ण मौद्रीकरण योजना बहुत उपयोगी एवं व्यावहारिक है लेकिन इसके समक्ष बुनियादी सुविधाओं संबंधी कई चुनौतियां हैं। सोने के परीक्षण और पिघलाने के लिए जो हॉलमार्किंग केन्द्र चिह्नित किए गए हैं, उनमें से आधे से ज्यादा केन्द्रों में सोने को पिघलाने की सुविधा नहीं है। देश के दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों के लोगों से अधिक मात्रा में सोना जुटाए जाने की संभावना है, लेकिन इन शहरों में हॉलमार्किंग केन्द्रों का अभाव है। इतना ही नहीं पूरे देश में सोने को सुरक्षित रखने की केवल 32 रिफाइनरियां हैं। ऐसे में सोने को सुरक्षित जगह तक लाना और इसे उधार लेने वालों तक पहुंचाना भी बड़ी चुनौती है। योजना के तहत कोई व्यक्ति जितना चाहे उतना सोना बैंकों में जमा कर सकता है, लेकिन अधिक मात्रा में सोना जमा कराए जाने पर आयकर विभाग से पूछताछ संबंधी किसी राहत की बात योजना में कहीं भी उल्लेखित नहीं है। ऐसे में जमाकर्ताओं को डर होगा कि आयकर अधिकारी सोने के स्रोत के बारे में पूछताछ भी कर सकते हैं। नई स्वर्ण मौद्रीकरण योजना की सफलता के लिए इन बातों पर ध्यान दिया जाना जरूरी होगा।

Thursday 10 September 2015

डेनमार्क ने जर्मनी के साथ रेल लिंक बंद किया, यूरोप में गहराया संकट

डेनमार्क के एक फैसले के बाद यूरोप में शरणार्थी संकट और गहरा गया है। डेनमार्क ने यूरोप में आने वाले शरणार्थियों को रोकने के लिए इसके साथ सभी रेल लिंक्‍स को सस्‍पेंड कर दिया है। इसके बाद सैंकड़ों शरणार्थियों की भीड़ सीमा पर इकट्ठा है।
डेनमार्क पुलिस ने दोनों देशों को जोड़ने वाले हाईवे को भी उस समय बंद कर दिया जब शरणार्थियों ने ट्रेन में सवार होने से रोके जाने पर पैदल ही चलना शुरू कर दिया। शरणार्थी स्वीडन जाना चाहते हैं। डेनमार्क के रेलवे ऑपरेटर डीएसबी का कहना है कि जर्मनी से आने और जाने वाली ट्रेनों को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दिया गया है।
इससे पहले डेनमार्क में पुलिस ने रोडबे नामक स्थान पर दो ट्रेनों में सवार शरणार्थियों को रोका। पुलिस के अनुसार शरणार्थियों ने ट्रेनों से उतरने से इनकार कर दिया क्योंकि वह डेनमार्क में अपनी पंजीकरण नहीं कराना चाहते थे और स्वीडन जाना चाहते थे।
जब से स्वीडन ने सीरिया से आ रहे शरणार्थियों को स्वीकार कर दस्तावेज देने का वादा किया है तब से ही शरणाथियों की पहली पसंद स्वीडन बन गया है।